31 अक्तूबर 2012

ग़ज़ल

रिश्ते कहने से क्या बदलते हैं?
ये तो ताउम्र साथ चलते हैं।

शायरी और किसे कहते हैं। 
आंसू ही गीत बन के ढलते हैं। 

उन के आगे क्या गिडगिडाते हो 
कभी पत्थर भी क्या पिघलते हैं/

अक्ल से काम ले दिल पे न जा।
 दिल तो बच्चों से हैं मचलते हैं।

अजीब दौर है आये दिन ही 
हादसे होते - होते टालते हैं।

वक्त पे तुम भी सम्भल जाओगे 
कदम हर शख्स के फिसलते हैं।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मेरे ब्लॉग पर आने के लिए, बहुमूल्य समय निकालने के लिए आपका बहुत -बहुत धन्यवाद!
आपकी प्रतिक्रिया मुझे बहुत प्रोत्साहन देगी....