कितनी नाजुक है यह रिश्तों की डोर
जरा सी लापरवाही से ही
उलझ जाती है गाँठ बन कर.
और फिर सुलझती भी नहीं जल्दी-जल्दी.
पढ़ता है सुलझाना
बहुत ही हौले से
बड़े ही यत्न से,धीरता से इसे .
क्योंकि
और अधिक जोराज़ोरी सेजरा सी खींचातानी से
यह और उलझ सकती है.
बिल्कुल टूट भी सकती है.