पढ़ी-लिखी हो या अनपढ़ ,
कामकाजी हो या घरेलू
सुबह सवेरे,मुंह-अँधेरे
घरभर के जगने से पहले जग जाती है .
बिना थके,बिना रुके मशीन बन ढेरों कामनिपटती है.
रात को थकी-मांदी हांफती,
गिरती, ढहती कांपती
आख़िरकार पीठ लगा चारपाई पर
देर रात गए वह सोती है
क्योंकि
अभिशप्त है वह
भारतीय नारी है .
नारी होने का अभिशाप
उम्र भर ढोती है.
कामकाजी हो या घरेलू
सुबह सवेरे,मुंह-अँधेरे
घरभर के जगने से पहले जग जाती है .
बिना थके,बिना रुके मशीन बन ढेरों कामनिपटती है.
रात को थकी-मांदी हांफती,
गिरती, ढहती कांपती
आख़िरकार पीठ लगा चारपाई पर
देर रात गए वह सोती है
क्योंकि
अभिशप्त है वह
भारतीय नारी है .
नारी होने का अभिशाप
उम्र भर ढोती है.