26 सितंबर 2010

आधी दुनिया

आधी दुनिया का पूरा सच
कोई नहीं जानता
और अधिकतर लोग जानना भी नहीं चाहते.

उनकी दिलचस्पी
सीमित रहती है
आधी दुनिया की देह तक ही.

देह से परे
तन के भीतर
 छिपे  सुशुप्त मन से
उन्हें नहीं रहता कोई  सरोकार.

नहीं जानना चाहते वे
काया के भीतर की माया,
तन के भीतर का मन.

निश्चेष्ट रहा जो सदियों तक
वह  अब जगना चाहता है,
निकलना चाहता है
इस निद्रा से
गुलामी की मोह भरी तन्द्रा से

वह अब जागृत हो
 कुछ कर दिखाना चाहता है.

रूढ़िओं-परम्पराओं
और संस्कारों के संकीरण वृतों से
बाहर आना चाहता है.

और इसके लिए
स्वयं उसे ही
करना होगा प्रयास
क्योंकि कुछ भी नहीं होता अनायास

जब तक
अपने भीतर  के बल से
अपनी शक्ति के सत्य से
 वह  स्वयं रहेगी अनजान
तब तक हाँ तब तक
नहीं मिल पायेगी
आधी दुनिया को उसकी पूरी पहचान.

2 टिप्‍पणियां:

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