कितनी  नाजुक  है  यह  रिश्तों  की  डोर 
 जरा सी लापरवाही से ही 
उलझ जाती है गाँठ बन कर.
जरा सी लापरवाही से ही 
उलझ जाती है गाँठ बन कर.
और फिर सुलझती भी नहीं जल्दी-जल्दी.
पढ़ता है सुलझाना
बहुत ही हौले  से
बड़े ही यत्न से,धीरता से इसे .
क्योंकि 
और अधिक  जोराज़ोरी सेजरा सी खींचातानी से
यह और उलझ सकती है.
 बिल्कुल टूट  भी सकती है.
 
 
 
 
          
      
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
सार्थक, सारगर्भित प्रस्तुति, सादर.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें.
आपका बहुत -बहुत धन्यवाद!
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