सावन
सावन में पेड़ों तले झूल रही गोरियां
टप-टप-टप टपक रही पीली निबौरियां .
मेहंदी युक्त हाथों में चूड़ियाँ खनक रही.
सज-संवर के घूम रही गाँव की ये छोरियां .
तीज के त्यौहार की उमंग में, उल्लास में.
बूढ़ियाँ क्या युवतियाँ, सब हो रही है बौरियाँ.
चाव से लगी हैं बहनें राखियाँ बनाने में.
भाई की कलाई हित बुन रही है डोरियाँ.
धरती माँ के हरियाले आँचल तले.
सद्य-जात धान को मिल रही हैं लोरियां.
घर घर में पकते हैं खूब पकवान रे
खीर, मालपूए और खस्ता कचौड़ियां.
घर घर में पकते हैं खूब पकवान रे
खीर, मालपूए और खस्ता कचौड़ियां.
-- डॉ. पूनम गुप्त
#सावन, #हरियाली_तीज, #राखी, #श्रावण
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very nice poem poonam di
जवाब देंहटाएंgoldy ldh
you r the best dee
जवाब देंहटाएंAnkur Goel
ati sundar...
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