14 सितंबर 2010

अभिशप्त

पढ़ी-लिखी हो या अनपढ़ ,
 कामकाजी हो या घरेलू
सुबह सवेरे,मुंह-अँधेरे 
घरभर के जगने से पहले जग जाती है .
बिना थके,बिना रुके मशीन बन ढेरों कामनिपटती है.
रात को थकी-मांदी हांफती,
गिरती, ढहती कांपती 
आख़िरकार   पीठ लगा चारपाई पर 
देर रात गए वह सोती है 
क्योंकि  
                                             अभिशप्त है वह 
                                            भारतीय नारी है .
                                          नारी होने का अभिशाप 
                                               उम्र भर ढोती है.

2 टिप्‍पणियां:

  1. इस सुंदर ब्लाग के लिए बहुत बधाई, दीपावली की श्ुभकामनाएं

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  2. ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है और आपको भी दीपावली की शुभ-कामनाएं!

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मेरे ब्लॉग पर आने के लिए, बहुमूल्य समय निकालने के लिए आपका बहुत -बहुत धन्यवाद!
आपकी प्रतिक्रिया मुझे बहुत प्रोत्साहन देगी....