5 मई 2011

गज़ल

धीरे धीरे तुम्हें भुलाना सीखेंगे .
अपने मन को भी समझाना सीखेंगे.

पढ़ पाए न कोई खुली किताबों सा 
चेहरे का हर भेद छुपाना सीखेंगे.


तुम भी करवट बदल बदल के रात बिताओ 
हम भी तेरी नीद उड़ाना सीखेंगे.


तुम्हे दिखायेंगे न मन के ताने बाने
खुद अपनी उलझन सुलझाना सीखेंगे.


बहुत सजाये 'पूनम' पलकों पे मोती 
अब होठों पे चाँद सजाना सीखेंगे.

2 टिप्‍पणियां:

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