नारी
युगों-युगों से हारी
इस पुरुष समाज से
देती आयी है परीक्षा
लगती आयी है दांव पर.
कभी बना दी गयी शिला.
पुरुष प्रधान समाज में उसे भला क्या मिला?
इस पर यह कहना
की नारी तुम केवल श्रध्दा हो
लगता है एक दुखद उपहास
मर्मान्तक पीड़ा से भरा है यह अहसास
कि स्रष्टा है जो
जो जननी है
धाए के अतिरिक्त
कुछ भी रहने नही दी जाती.
यहाँ तक की अजन्मी कोख की बच्ची को भी
आहत होने से बचा नही पाती.
युगों से हारी
यह भारतीय नारी.
युगों से हारी
इस भारतीय नारी को
अपना मानदंड
अब स्वयं बदलना होगा
अब दुर्गा और चंडी के
कदमों पर चलना होगा
हाँ! उसे ही यह समाज बदलना होगा
हाँ! उसे ही यह समाज बदलना होगा.
युगों-युगों से हारी
इस पुरुष समाज से
देती आयी है परीक्षा
कभी बना दी गयी शिला.
पुरुष प्रधान समाज में उसे भला क्या मिला?
इस पर यह कहना
की नारी तुम केवल श्रध्दा हो
लगता है एक दुखद उपहास
मर्मान्तक पीड़ा से भरा है यह अहसास
कि स्रष्टा है जो
जो जननी है
धाए के अतिरिक्त
कुछ भी रहने नही दी जाती.
यहाँ तक की अजन्मी कोख की बच्ची को भी
आहत होने से बचा नही पाती.
युगों से हारी
यह भारतीय नारी.
युगों से हारी
इस भारतीय नारी को
अपना मानदंड
अब स्वयं बदलना होगा
सीता,शकुन्तला,पांचाली
या अहल्या सी सहिष्णुता त्याग अब दुर्गा और चंडी के
कदमों पर चलना होगा
हाँ! उसे ही यह समाज बदलना होगा.
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